राजस्थान
के इतिहास 1582 में दिवेर का
युद्ध एक महत्वपूर्ण युद्ध
माना जाता है, क्योंकि
इस युद्ध में राणा प्रताप
के खोये हुए राज्यों
की पुनः प्राप्ती हुई,
इसके पश्चात राणा प्रताप व
मुगलो के बीच एक
लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में
घटित हुआ, जिसके कारण
कर्नल जेम्स टाॅड ने इस
युद्ध को "मेवाड़ का मैराथन" कहा
|
सफलता
और अवसान
.पू.
1579 से 1585 तक पूर्व उत्तर
प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के
मुग़ल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने
लगे थे और महाराणा
भी एक के बाद
एक गढ़ जीतते जा
रहे थे अतः परिणामस्वरूप
अकबर उस विद्रोह को
दबाने में उल्झा रहा
और मेवाड़ पर से मुगलो
का दबाव कम हो
गया।
इस बात का
लाभ उठाकर महाराणा ने ई.पू.
1585 में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को और भी
तेज कर लिया। महाराणा
की सेना ने मुगल
चौकियों पर आक्रमण शुरू
कर दिए और तुरंत
ही उदयपूर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से
महाराणा का अधिकार स्थापित
हो गया। महाराणा प्रताप
ने जिस समय सिंहासन
ग्रहण किया , उस समय जितने
मेवाड़ की भूमि पर
उनका अधिकार था , पूर्ण रूप
से उतने ही भूमि
भाग पर अब उनकी
सत्ता फिर से स्थापित
हो गई थी। बारह
वर्ष के संघर्ष के
बाद भी अकबर उसमें
कोई परिवर्तन न कर सका।
और इस तरह महाराणा
प्रताप समय की लंबी
अवधि के संघर्ष के
बाद मेवाड़ को मुक्त करने
में सफल रहे और
ये समय मेवाड़ के
लिए एक स्वर्ण युग
साबित हुआ।
मेवाड़ पर
लगा हुआ अकबर ग्रहण
का अंत ई.पू.
1585 में हुआ। उसके बाद
महाराणा प्रताप उनके राज्य की
सुख-सुविधा में जुट गए,परंतु दुर्भाग्य से उसके ग्यारह
वर्ष के बाद ही
19 जनवरी 1597 में अपनी नई
राजधानी चावंड में उनकी मृत्यु
हो गई।
महाराणा
प्रताप सिंह के डर
से अकबर अपनी राजधानी
लाहौर लेकर चला गया
और महाराणा के स्वर्ग सीधरने
के बाद अागरा ले
आया।
'एक
सच्चे राजपूत, शूरवीर, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के
रूप में महाराणा प्रताप
दुनिया में सदैव के
लिए अमर हो गए।