अकबर,
महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा
शत्रु था, पर उनकी
यह लड़ाई कोई व्यक्तिगत द्वेष
का परिणाम नहीं थी, हालांकि
अपने सिद्धांतों और मूल्यों की
लड़ाई थी। एक वह
था जो अपने क्रूर
साम्राज्य का विस्तार करना
चाहता था , जब की
एक तरफ ये थे
जो अपनी भारत मातृभूमि
की स्वाधीनता के लिए संघर्ष
कर रहे थे। महाराणा
प्रताप की मृत्यु पर
अकबर को बहुत ही
दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय
से वो महाराणा प्रताप
के गुणों का प्रशंसक था
और अकबर जनता था
की महाराणा जैसा वीर कोई
नहीं है इस धरती
पर। यह समाचार सुन
अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो
गया और उसकी आँख
में आंसू आ गए।
महाराणा
प्रताप के स्वर्गावसान के
समय अकबर लाहौर में
था और वहीं उसे
सूचना मिली कि महाराणा
प्रताप की मृत्यु हो
गई है। अकबर की
उस समय की मनोदशा
पर अकबर के दरबारी
दुरसा आढ़ा ने राजस्थानी
छंद में जो विवरण
लिखा वो कुछ इस
तरह है:-
अस लेगो अणदाग पाग
लेगो अणनामी
गो आडा गवड़ाय जीको
बहतो घुरवामी
नवरोजे
न गयो न गो
आसतां नवल्ली
न गो झरोखा हेठ
जेठ दुनियाण दहल्ली
गहलोत
राणा जीती गयो दसण
मूंद रसणा डसी
निसा
मूक भरिया नैण तो मृत
शाह प्रतापसी
अर्थात्
हे गेहलोत राणा प्रतापसिंघ तेरी
मृत्यु पर शाह यानि
सम्राट ने दांतों के
बीच जीभ दबाई और
निश्वास के साथ आंसू
टपकाए। क्योंकि तूने कभी भी
अपने घोड़ों पर मुगलिया दाग
नहीं लगने दिया। तूने
अपनी पगड़ी को किसी के
आगे झुकाया नहीं, हालांकि तू अपना आडा
यानि यश या राज्य
तो गंवा गया लेकिन
फिर भी तू अपने
राज्य के धुरे को
बांए कंधे से ही
चलाता रहा। तेरी रानियां
कभी नवरोजों में नहीं गईं
और ना ही तू
खुद आसतों यानि बादशाही डेरों
में गया। तू कभी
शाही झरोखे के नीचे नहीं
खड़ा रहा और तेरा
रौब दुनिया पर निरंतर बना
रहा। इसलिए मैं कहता हूं
कि तू सब तरह
से जीत गया और
बादशाह हार गया।
अपनी
मातृभूमि की स्वाधीनता के
लिए अपना पूरा जीवन
का बलिदान कर देने वाले
ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा
प्रताप और उनके स्वामिभक्त
अश्व चेतक को शत-शत कोटि-कोटि
प्रणाम।